Chaturmas 2025: भगवान विष्णु का शयन, जानें 4 महीने के नियम, महत्व और शुभ-अशुभ कार्य

HIGHLIGHTS OF CONTENTS-

परिचय: चातुर्मास क्या है?

Chaturmas 2025: चातुर्मास, भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्वकाल है जो हर साल प्रकृति के साथ-साथ हमारी आंतरिक चेतना में भी गहरा बदलाव लाता है। यह सिर्फ़ धार्मिक अनुष्ठानों का समय नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन, संयम और शुद्धि का एक अद्वितीय अवसर है। नाम से ही स्पष्ट है, चातुर्मास दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘चातुः’ जिसका अर्थ है ‘चार’ और ‘मास’ जिसका अर्थ है ‘महीने’।

इस प्रकार, यह चार महीनों की एक विशेष अवधि है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है। इस अवधि को देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक माना जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इन चार महीनों के लिए भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं।

यह अवधि वर्षा ऋतु के आगमन के साथ मेल खाती है, जब प्रकृति अपने चरम पर होती है। हिंदू धर्म में इसका अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसे आध्यात्मिक उन्नति और तपस्या के लिए सबसे शुभ काल माना जाता है। इस दौरान विवाह जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं, जबकि पूजा-पाठ, दान-पुण्य और स्वाध्याय पर विशेष जोर दिया जाता है। यह समय हमें बाहरी दुनिया की चकाचौंध से हटकर अपने भीतर झाँकने, अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने और मानसिक तथा शारीरिक शुद्धि प्राप्त करने का अवसर देता है।


Chaturmas 2025 की तिथि और समय सारिणी (Dates & Timings)

चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी देवशयनी एकादशी से होती है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी प्रबोधिनी एकादशी को होती है।

👉 चातुर्मास 2025 प्रारंभ:
🗓️ 8 जुलाई 2025 (मंगलवार)देवशयनी एकादशी

👉 चातुर्मास 2025 समाप्त:
🗓️ 5 नवम्बर 2025 (बुधवार)प्रबोधिनी एकादशी

Chaturmas 2025: भगवान विष्णु का शयन, जानें 4 महीने के नियम, महत्व और शुभ-अशुभ कार्य
Chaturmas 2025: भगवान विष्णु का शयन, जानें 4 महीने के नियम, महत्व और शुभ-अशुभ कार्य

Chaturmas 2025: प्रमुख तिथियाँ और घटनाएँ

हर वर्ष चातुर्मास की तिथियाँ हिंदू पंचांग के अनुसार निर्धारित होती हैं। वर्ष 2025 में, चातुर्मास 6 जुलाई, 2025 (रविवार) को देवशयनी एकादशी से शुरू होगा और 26 अक्टूबर, 2025 (रविवार) को देवउठनी एकादशी पर समाप्त होगा। इस पूरे चार महीने की अवधि में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार पड़ते हैं, जो इसे और भी विशेष बना देते हैं:

  • देवशयनी एकादशी (6 जुलाई, 2025): इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। यह चातुर्मास का प्रारंभिक बिंदु है।
  • श्रावण मास (जुलाई-अगस्त): यह पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान भक्तजन कांवड़ यात्रा करते हैं, सोमवार के व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
  • रक्षाबंधन (18 अगस्त, 2025): भाई-बहन के प्रेम का यह पवित्र त्योहार भी चातुर्मास के दौरान ही आता है।
  • जन्माष्टमी (26 अगस्त, 2025): भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
  • गणेश चतुर्थी (29 अगस्त, 2025): दस दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत होती है, जिसमें भगवान गणेश की स्थापना और पूजा की जाती है।
  • अनंत चतुर्दशी (7 सितंबर, 2025): गणेश विसर्जन का दिन और भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा।
  • पितृ पक्ष (9 सितंबर से 23 सितंबर, 2025): यह 15 दिवसीय अवधि पूर्वजों को समर्पित होती है, जब उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है और तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं।
  • शारदीय नवरात्रि (24 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2025): माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो शक्ति और भक्ति का प्रतीक है।
  • दशहरा (3 अक्टूबर, 2025): बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक, भगवान राम द्वारा रावण वध का उत्सव।
  • करवा चौथ (17 अक्टूबर, 2025): विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
  • अहोई अष्टमी (20 अक्टूबर, 2025): संतान की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए माएँ व्रत रखती हैं।
  • धनतेरस (23 अक्टूबर, 2025): दिवाली उत्सव की शुरुआत, धन और समृद्धि के लिए खरीदारी का दिन।
  • छोटी दिवाली/नरक चतुर्दशी (24 अक्टूबर, 2025): दीपों का पर्व।
  • दिवाली (25 अक्टूबर, 2025): प्रकाश का सबसे बड़ा त्योहार, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा।
  • देवउठनी एकादशी (26 अक्टूबर, 2025): इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं, और इसके साथ ही चातुर्मास का समापन होता है। यह दिन शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

चातुर्मास का धार्मिक और पौराणिक महत्व

चातुर्मास (Chaturmas 2025) का धार्मिक और पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसकी सबसे प्रमुख मान्यता भगवान विष्णु के शयन से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में वे सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। यही कारण है कि चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व हो जाता है, खासकर सावन के महीने में।

इस शयन के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि को दिए गए वरदान के तहत उनके पाताल लोक में निवास किया था। उनकी अनुपस्थिति में सृष्टि के संचालन में बाधा आने लगी, तब देवी लक्ष्मी ने उन्हें मुक्त कराने के लिए एक उपाय किया। अंततः, भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया कि वह हर वर्ष चार महीने उनके यहाँ निवास करेंगे और इन चार महीनों में योग निद्रा में रहेंगे।

यह केवल एक प्रतीकात्मक शयन नहीं है, बल्कि इसके गहरे आध्यात्मिक अर्थ हैं। भगवान विष्णु का शयन इस बात का प्रतीक है कि इस दौरान ब्रह्मांडीय ऊर्जाएँ थोड़ी शिथिल पड़ जाती हैं, या कहें कि बाहरी गतिविधियों की बजाय आंतरिक ऊर्जाओं पर ध्यान केंद्रित करने का समय आता है। इस अवधि में दैवीय शक्तियाँ कमज़ोर पड़ जाती हैं और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ सकता है, इसलिए व्यक्ति को आत्म-सुरक्षा और आत्म-शुद्धि पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

चातुर्मास के दौरान विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान शिव के साथ-साथ, देवी दुर्गा (नवरात्रि में), भगवान गणेश (गणेश चतुर्थी पर) और अन्य स्थानीय देवताओं की भी उपासना की जाती है। यह समय हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने और अपनी आस्था को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। माना जाता है कि इस दौरान किए गए जप, तप, ध्यान और दान का फल कई गुना अधिक मिलता है।


चातुर्मास के दौरान पालन किए जाने वाले नियम और परंपराएँ

चातुर्मास केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक अनुशासित जीवनशैली अपनाने का काल है। इस दौरान कई विशेष नियम और परंपराएँ सदियों से चली आ रही हैं, जिनका पालन कर व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त कर सकता है।

खान-पान संबंधी नियम

चातुर्मास में सात्विक भोजन पर विशेष जोर दिया जाता है। इस अवधि में कुछ विशेष खाद्य पदार्थों का त्याग करने की परंपरा है:

  • पालक, बैंगन, मूली और अन्य पत्तीदार सब्ज़ियाँ: वर्षा ऋतु में इन सब्ज़ियों में कीड़े लगने या बैक्टीरिया पनपने का खतरा अधिक होता है। साथ ही, ये पचने में भारी होती हैं, जिससे पाचन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
  • दही और दूध (विशेष महीनों में): कुछ परंपराओं में सावन में दूध और भाद्रपद में दही का सेवन वर्जित माना जाता है। इसका कारण भी स्वास्थ्य संबंधी हो सकता है, क्योंकि इन महीनों में डेयरी उत्पादों से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
  • मांसाहार और शराब: चातुर्मास में मांसाहार और शराब का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है। यह सात्विक जीवनशैली और इंद्रिय संयम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • लहसुन और प्याज: इन्हें तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है और आत्म-नियंत्रण व आध्यात्मिक साधना के लिए इनसे बचने की सलाह दी जाती है।

इसके बजाय, इस दौरान फल, अनाज, दालें और ऐसी सब्ज़ियाँ खाने पर ज़ोर दिया जाता है जो आसानी से पच सकें और शरीर को शुद्ध रख सकें।

विवाह और अन्य शुभ कार्यों का निषेध

यह चातुर्मास (Chaturmas 2025) का सबसे प्रमुख नियम है। इन चार महीनों में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे सभी मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इसका मुख्य कारण भगवान विष्णु का शयन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, तो शुभ कार्यों के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता। इसके अलावा, इस अवधि में वातावरण में कुछ नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव बढ़ सकता है, जिससे इन कार्यों में विघ्न उत्पन्न हो सकता है। यह निषेध सिर्फ़ धार्मिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी है, क्योंकि वर्षा ऋतु में यात्रा करना और बड़े आयोजन करना मुश्किल हो जाता है।

धार्मिक अनुष्ठान और जप-तप का महत्व

चातुर्मास आध्यात्मिक साधनाओं के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस दौरान:

  • नियमित पूजा-पाठ: भगवान विष्णु, भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए।
  • मंत्र जप: ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र जैसे मंत्रों का जप करना अत्यंत फलदायी होता है।
  • कथा श्रवण: भागवत पुराण, रामायण, शिव पुराण जैसी धार्मिक कथाओं का श्रवण और पठन करना चाहिए।
  • दान-पुण्य: गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को दान देना, भोजन कराना या उनकी सहायता करना शुभ माना जाता है।
  • तीर्थ यात्रा: पवित्र नदियों में स्नान और धार्मिक स्थलों की यात्रा करना इस दौरान विशेष पुण्यकारी माना जाता है।

यात्रा और अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध

कुछ परंपराओं में चातुर्मास के दौरान लंबी यात्राओं से बचने की सलाह दी जाती है, खासकर जब तक बहुत आवश्यक न हो। इसका एक कारण वर्षा ऋतु में सड़कों और परिवहन में आने वाली बाधाएँ हैं। साथ ही, यह समय अपने घर में रहकर आत्म-चिंतन और साधना करने के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान नये व्यवसाय की शुरुआत या बड़े निवेश से भी बचने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इन कार्यों के लिए भगवान विष्णु का आशीर्वाद नहीं मिलता।


वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभ: चातुर्मास सिर्फ़ धार्मिक नहीं!

चातुर्मास को अक्सर केवल धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी छिपे हैं। भारतीय परंपराओं में धर्म और विज्ञान का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है, और चातुर्मास इसका एक उत्तम उदाहरण है।

मौसमी बदलाव और पाचन क्रिया पर प्रभाव

चातुर्मास (Chaturmas 2025) वर्षा ऋतु में पड़ता है, जब वातावरण में नमी बढ़ जाती है। इस दौरान:

  • पाचन शक्ति का मंद होना: आयुर्वेद के अनुसार, वर्षा ऋतु में हमारी पाचन अग्नि (जठराग्नि) मंद पड़ जाती है। नमी और बादलों भरा मौसम शरीर की आंतरिक अग्नि को प्रभावित करता है, जिससे भोजन को पचाना मुश्किल हो जाता है।
  • रोगों का खतरा: वर्षा के मौसम में बैक्टीरिया, वायरस और फंगल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। पानी और भोजन दूषित होने की संभावना भी अधिक होती है, जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ जैसे दस्त, पेचिश और टाइफाइड बढ़ सकते हैं।

चातुर्मास के दौरान खान-पान संबंधी नियमों का पालन करने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है। सात्विक, हल्का और सुपाच्य भोजन लेने से पाचन तंत्र पर कम दबाव पड़ता है और शरीर स्वस्थ रहता है।

सात्विक भोजन और शारीरिक शुद्धिकरण

मांसाहार, शराब, लहसुन, प्याज और कुछ विशेष सब्ज़ियों का त्याग करने का वैज्ञानिक आधार है। ये खाद्य पदार्थ शरीर में ‘तामसिक’ ऊर्जा बढ़ाते हैं, जिससे आलस्य, क्रोध और बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इसके विपरीत, सात्विक भोजन जैसे अनाज, दालें, फल और उबली हुई सब्ज़ियाँ शरीर को शुद्ध करती हैं, ऊर्जावान बनाती हैं और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं। यह एक प्रकार का प्राकृतिक डिटॉक्स है जो शरीर को अंदर से साफ करता है।

मानसिक शांति और तनाव मुक्ति में ध्यान की भूमिका

चातुर्मास में जप, तप, योग और ध्यान पर जोर दिया जाता है। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि ध्यान और योग तनाव कम करने, मानसिक शांति प्राप्त करने और एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान, जब बाहर की गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं, तब यह समय आत्म-चिंतन और आंतरिक शांति के लिए आदर्श होता है। यह व्यक्ति को भागदौड़ भरी जिंदगी से थोड़ा विराम लेकर खुद से जुड़ने का अवसर देता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ाव

चातुर्मास हमें प्रकृति के करीब लाता है। इस दौरान कई जीव-जंतुओं के प्रजनन का समय होता है। अनावश्यक यात्रा से बचना और सात्विक जीवनशैली अपनाना एक तरह से पर्यावरण के प्रति सम्मान और उसके संरक्षण का भी प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर कैसे जीवन जिएँ। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान और पारिस्थितिक संतुलन का भी पाठ है।


चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें: Chaturmas 2025

चातुर्मास एक सुनियोजित और संयमित जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान कुछ विशिष्ट कार्य करने की सलाह दी जाती है, जबकि कुछ कार्यों से बचने के लिए कहा जाता है।

✔ क्या करें:

  • नियमित पूजा-पाठ और मंत्र जप: हर दिन अपने इष्ट देव की पूजा करें। विशेष रूप से भगवान विष्णु के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ और भगवान शिव के ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जप करें। यह मन को शांत और एकाग्र करता है।
  • कथा श्रवण और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: भागवत पुराण, रामायण, शिव पुराण, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का नित्य पाठ करें या सुनें। यह ज्ञान वृद्धि करता है और आध्यात्मिक समझ को गहरा करता है।
  • दान-पुण्य और सेवा कार्य: अपनी क्षमता अनुसार गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को भोजन, वस्त्र या धन का दान करें। गौ सेवा और पक्षियों को दाना डालना भी शुभ माना जाता है। निस्वार्थ सेवा से मन को शांति मिलती है।
  • योग और ध्यान का अभ्यास: नियमित रूप से योग और ध्यान करें। यह शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए अत्यंत लाभकारी है। वर्षा ऋतु में जब बाहरी गतिविधियाँ कम हों, तो यह आत्म-चिंतन का उत्तम समय है।
  • सात्विक जीवनशैली अपनाना: हल्का, सुपाच्य और सात्विक भोजन ग्रहण करें। बासी भोजन, तला हुआ और मसालेदार भोजन से बचें। पर्याप्त नींद लें और दिनचर्या को नियमित करें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन: इस दौरान इंद्रिय संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • तुलसी की पूजा: तुलसी को भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। चातुर्मास में तुलसी की नियमित पूजा और परिक्रमा करना शुभ फलदायी होता है।
  • शारीरिक और मानसिक शुद्धि: स्नान, स्वच्छ वस्त्र धारण करना और मन में अच्छे विचारों को लाना आवश्यक है। नकारात्मक विचारों और भावनाओं से बचें।

❌ क्या न करें:

  • विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य: जैसा कि पहले बताया गया है, चातुर्मास में भगवान विष्णु के शयन के कारण विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, सगाई जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
  • तामसिक भोजन का सेवन: मांसाहार, शराब, लहसुन, प्याज, अंडे और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन न करें। ये न केवल शरीर को दूषित करते हैं, बल्कि मन में भी नकारात्मकता लाते हैं।
  • तेल मालिश (कुछ दिनों को छोड़कर): कुछ परंपराओं में चातुर्मास के दौरान तेल मालिश से बचने की सलाह दी जाती है, खासकर श्रावण मास में।
  • निंदा और द्वेष से बचें: किसी की निंदा न करें, किसी से ईर्ष्या न करें। मन में शांति और सद्भाव बनाए रखें। क्रोध और लोभ जैसी भावनाओं पर नियंत्रण रखें।
  • नशे का सेवन: किसी भी प्रकार के नशे, जैसे धूम्रपान, तंबाकू आदि का सेवन इस दौरान बिल्कुल न करें।
  • यात्रा (अनावश्यक): अनावश्यक लंबी यात्राओं से बचें, खासकर तब जब वे धार्मिक या अत्यावश्यक न हों।
  • बड़े बाल या दाढ़ी बढ़ाना (कुछ मान्यताओं में): कुछ परंपराओं में इस दौरान बाल कटवाने या दाढ़ी बनाने से परहेज किया जाता है, हालांकि यह नियम हर जगह समान रूप से नहीं माना जाता।

इन नियमों का पालन कर व्यक्ति चातुर्मास की अवधि का अधिकतम लाभ उठा सकता है और अपने जीवन में सकारात्मकता ला सकता है।


क्षेत्रीय विविधताएँ: भारत के विभिन्न हिस्सों में चातुर्मास

भारत एक विशाल और विविध संस्कृति वाला देश है, और यही विविधता चातुर्मास के पालन में भी देखी जाती है। यद्यपि मूल अवधारणा समान रहती है, लेकिन इसके रीति-रिवाज, अनुष्ठान और विशिष्टताएँ अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं।

  • उत्तर भारत में परंपराएँ: उत्तर भारत में चातुर्मास का विशेष महत्व है। यहाँ सावन मास में भगवान शिव की विशेष पूजा और कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है। कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि और दशहरा जैसे पर्व बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस दौरान भजन-कीर्तन, रामकथा और भागवत कथाओं का आयोजन आम है। उपवास और सात्विक भोजन का पालन सख्ती से किया जाता है। देवउठनी एकादशी पर गन्ने से मंडप बनाकर तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है, जो शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है।
  • दक्षिण भारत में अलग-अलग रूप: दक्षिण भारत में चातुर्मास को ‘दक्षियाण’ या ‘दक्षियायन’ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भी भगवान विष्णु के शयन की मान्यता है, और इस दौरान धार्मिक अनुष्ठानों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। तमिलनाडु में आदिलक्ष्मी पूजा और केरल में ओणम का त्योहार इसी अवधि में आता है। यहाँ के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। खान-पान में भी कुछ खास नियम माने जाते हैं, जैसे कुछ क्षेत्रों में इमली के सेवन से परहेज किया जाता है।
  • महाराष्ट्र और गुजरात में विशिष्टताएँ: महाराष्ट्र में चातुर्मास के दौरान ‘हरतालिका तीज’ और ‘गणेश चतुर्थी’ का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। गणेश उत्सव यहाँ का सबसे बड़ा त्योहार है, जो 10 दिनों तक चलता है। ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ भी इस दौरान मनाया जाता है। गुजरात में भी नवरात्रि का गरबा उत्सव अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। जैन समुदाय भी चातुर्मास को ‘पर्युषण पर्व’ के रूप में मनाता है, जिसमें आत्म-शुद्धि और तपस्या पर विशेष जोर दिया जाता है।
  • बंगाल और पूर्वी भारत में चातुर्मास का स्वरूप: पूर्वी भारत, विशेषकर बंगाल में, चातुर्मास को दुर्गा पूजा के रूप में विशेष महत्व दिया जाता है। हालांकि दुर्गा पूजा चातुर्मास के अंत में आती है, लेकिन इसकी तैयारियाँ और भावनाएँ इस पूरी अवधि में व्याप्त रहती हैं। यहाँ भी श्रावण मास में शिव पूजा का प्रचलन है। उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा चातुर्मास की शुरुआत के आसपास ही होती है। इस क्षेत्र में भी सात्विक भोजन और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है।

इन क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद, चातुर्मास का मूल संदेश – आत्म-नियंत्रण, आध्यात्मिक उन्नति और सात्विक जीवनशैली – पूरे भारत में समान रूप से गूँजता है। यह दर्शाता है कि कैसे एक ही धार्मिक अवधारणा को विभिन्न संस्कृतियों और परम्पराओं ने अपने-अपने तरीके से अपनाया और समृद्ध किया है।


आधुनिक जीवन में चातुर्मास का महत्व और प्रासंगिकता

आज के भागदौड़ भरे, तनावपूर्ण और प्रौद्योगिकी-संचालित आधुनिक जीवन में चातुर्मास का महत्व पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। यह केवल एक प्राचीन परंपरा नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक है जो हमें समकालीन चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकता है।

  • तनावपूर्ण जीवनशैली में शांति का मार्ग: आधुनिक जीवनशैली अक्सर अत्यधिक तनाव, चिंता और अशांति से भरी होती है। चातुर्मास हमें इन चार महीनों के लिए एक निश्चित दिनचर्या, ध्यान, प्रार्थना और आत्म-चिंतन अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें बाहरी कोलाहल से दूर रहकर आंतरिक शांति और स्थिरता खोजने का अवसर देता है। यह एक ‘डिजिटल डिटॉक्स’ और ‘मानसिक अवकाश’ के रूप में कार्य कर सकता है, जहाँ हम खुद को फिर से ऊर्जावान कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य और वेलनेस के प्रति जागरूकता: जंक फूड, अनियमित खान-पान और शारीरिक निष्क्रियता आधुनिक स्वास्थ्य समस्याओं का मूल कारण हैं। चातुर्मास में सात्विक भोजन, उपवास और संयमित जीवनशैली पर जोर देकर हम अपने शरीर को अंदर से शुद्ध कर सकते हैं। यह हमें अपनी खान-पान की आदतों पर पुनर्विचार करने और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह मौसमी बीमारियों से बचने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का एक प्राकृतिक तरीका है।
  • पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ करना: चातुर्मास के दौरान लोग अक्सर एक साथ पूजा-पाठ करते हैं, कथाएँ सुनते हैं और त्योहार मनाते हैं। यह परिवारों को एक साथ लाने और सामुदायिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। बच्चों को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का यह एक बेहतरीन समय है।
  • आत्म-चिंतन और आत्म-सुधार का अवसर: यह समय हमें अपनी आदतों, विचारों और कार्यों का मूल्यांकन करने का अवसर देता है। इंद्रिय संयम और आत्म-नियंत्रण का अभ्यास कर हम अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और एक बेहतर इंसान बन सकते हैं। यह हमें अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने और आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में मदद करता है। यह केवल धार्मिक कर्मकांडों का पालन नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत विकास और आत्म-जागरूकता का एक शक्तिशाली उपकरण है।
  • पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता: चातुर्मास प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने का भी संदेश देता है। वर्षा ऋतु में जब प्रकृति कायाकल्प करती है, तब हमें भी उसके साथ अनुकूलन करना चाहिए। कुछ सब्जियों से परहेज या यात्राओं से बचना पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनशीलता को दर्शाता है।

संक्षेप में, चातुर्मास (Chaturmas 2025) हमें भौतिकवादी जीवन से हटकर आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक संतुलन प्राप्त करने का एक प्राचीन, फिर भी अत्यंत प्रासंगिक तरीका प्रदान करता है।


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निष्कर्ष – Chaturmas 2025: एक आध्यात्मिक और शारीरिक शुद्धि का पर्व

चातुर्मास केवल चार महीनों की एक कालावधि नहीं, बल्कि यह भारतीय सनातन परंपरा में गहरे निहित एक ऐसा महापर्व है जो हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करता है। यह वह समय है जब प्रकृति स्वयं भी अपनी कायापलट करती है, और मनुष्य को भी इस बदलाव के साथ सामंजस्य बिठाकर अपनी आंतरिक शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है। भगवान विष्णु के शयन की पौराणिक कथा के माध्यम से, यह हमें बाहरी गतिविधियों से थोड़ा हटकर आत्म-चिंतन और आत्म-विकास की ओर मुड़ने का संदेश देता है।

खान-पान, रहन-सहन, और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े इसके नियम केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि गहरे वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो वर्षा ऋतु में होने वाले शारीरिक और पर्यावरणीय बदलावों से बचाव का मार्ग प्रशस्त करते हैं। सात्विक भोजन, जप-तप, दान-पुण्य और इंद्रिय संयम का अभ्यास हमें न केवल बीमारियों से बचाता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।

आधुनिक जीवन की व्यस्तता और तनाव के बीच, चातुर्मास एक विराम, एक ‘रिसेट बटन’ का काम करता है। यह हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, परिवार और समुदाय के साथ समय बिताने, और स्वयं को बेहतर बनाने का बहुमूल्य अवसर देता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम प्रकृति के नियमों का सम्मान करते हुए एक संतुलित और अर्थपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

संक्षेप में, चातुर्मास (Chaturmas 2025) एक वार्षिक अनुस्मारक है कि वास्तविक समृद्धि बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, शुद्धता और आत्म-नियंत्रण में निहित है। यह हमें एक स्वस्थ, सुखी और आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर करता है, जो भारतीय संस्कृति की शाश्वत धरोहर है।


चातुर्मास से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)

यहाँ चातुर्मास से जुड़े कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं:

चातुर्मास में शादी क्यों नहीं होती?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि के पालक निद्रा में हों, तो कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे विवाह संपन्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता। इसके अलावा, वर्षा ऋतु के दौरान यात्रा और बड़े आयोजनों में व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी आती हैं।

चातुर्मास में कौन-कौन से व्रत आते हैं?

चातुर्मास में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार आते हैं, जिनमें से प्रमुख हैं: देवशयनी एकादशी, श्रावण सोमवार व्रत, हरियाली तीज, नाग पंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, अनंत चतुर्दशी, पितृ पक्ष, शारदीय नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस, दिवाली और देवउठनी एकादशी।

क्या चातुर्मास में बाल कटवा सकते हैं

यह मान्यता क्षेत्र और व्यक्तिगत परंपराओं पर निर्भर करती है। कुछ लोग चातुर्मास में बाल और दाढ़ी कटवाने से परहेज करते हैं, खासकर श्रावण मास में। हालाँकि, यह कोई कठोर नियम नहीं है और अधिकांश लोग इसमें कोई दिक्कत नहीं मानते।

गर्भवती महिलाओं के लिए चातुर्मास के नियम क्या हैं?

गर्भवती महिलाओं को चातुर्मास के नियमों का पालन अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार करना चाहिए। उन्हें कठोर उपवास से बचना चाहिए और केवल फलाहार या हल्का भोजन ग्रहण करना चाहिए, यदि वे उपवास कर रही हों। तामसिक भोजन और शराब का सेवन तो किसी भी स्थिति में वर्जित है। उन्हें पर्याप्त आराम करना चाहिए और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कोई भी कठोर नियम अपनाने से पहले डॉक्टर या अनुभवी पंडित से सलाह लेना उचित है

क्या चातुर्मास में तामसिक भोजन खा सकते हैं?

नहीं, चातुर्मास में मांसाहार, शराब, लहसुन, प्याज जैसे तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह वर्जित माना जाता है। इस अवधि में सात्विक और शुद्ध भोजन पर जोर दिया जाता है।

चातुर्मास में यात्रा करना शुभ है या अशुभ?

अनावश्यक लंबी यात्राओं से बचने की सलाह दी जाती है, खासकर यदि वे धार्मिक उद्देश्य से न हों। इसका कारण धार्मिक मान्यता (भगवान विष्णु का शयन) के साथ-साथ व्यावहारिक भी है – वर्षा ऋतु में सड़कों की स्थिति, परिवहन में बाधाएँ और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। अत्यावश्यक यात्राएँ की जा सकती हैं।

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